लोकसभा चुनाव में सियासी मात खाने के बाद अब उपचुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की योगी सरकार संगठन को साधने में जुट गई है. पिछले ढाई सालों से लटकी राजनैतिक नियुक्तियों का सिलसिला अब यूपी में शुरू हो गया है. योगी सरकार बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को सूबे के निगम, आयोग और बोर्ड में चेयरमैन और सदस्य के तौर पर नियुक्त कर उन्हें खुश करने में जुट गई है. यह योगी सरकार की राजनैतिक नियुक्तियों के जरिए सामाजिक समीकरण को फिर से मजबूत करने की स्ट्रैटेजी मानी जा रही है. उत्तर प्रदेश में 25 मार्च 2022 को योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल का गठन हुआ था. इसके बाद से बीजेपी कार्यकर्ता राजनैतिक नियुक्तियों का इंतजार कर रहे थे, लेकिन सरकार बनाम संगठन के सियासी तनातनी के चलते आयोग में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के नामों पर आपसी सहमति नहीं बन पा रही थी. पिछले दिनों लखनऊ में संघ, सरकार और संगठन के बीच बैठक हुई. इसके बाद ही अब राजनैतिक नियुक्ति का सिलसिला शुरू कर दिया है.
ढाई साल के बाद हुई राजनीतिक नियुक्ति
योगी सरकार ने सबसे पहले अनुसूचित जाति और अनसूचित जनजाति आयोग का गठन किया है. उसके बाद पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तियां की है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष की भी नियुक्त की गई है. उत्तर प्रदेश सरकार ने ढाई साल के बाद राजनीतिक नियुक्ति की है.
किस पद पर किसकी हुई नियुक्ति
सीतापुर के पूर्व सांसद राजेश वर्मा को उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग राज्य आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है. मिर्जापुर के सोहन लाल श्रीमाली और रामपुर के सूर्य प्रकाश पाल को उपाध्यक्ष नामित किया गया है. 24 सदस्य भी बनाए गए हैं, जिसमें सत्येंद्र कुमार बारी, मेलाराम पवार, फुल बदन कुशवाहा, विनोद यादव, शिव मंगल बयार, अशोक सिंह, ऋचा राजपूत, चिरंजीव चौरसिया, रवींद्र मणि, आरडी सिंह, कुलदीप विश्वकर्मा, लक्ष्मण सिंह, विनोद सिंह, रामशंकर साहू, डॉ. मुरहू राजभर, घनश्याम चौहान, जनार्दन गुप्ता, बाबा बालक, रमेश कश्यप, प्रमोद सैनी, करुणा शंकर पटेल, महेंद्र सिंह राणा और राम कृष्ण सिंह पटेल शामिल हैं.
SC/ST आयोग का गठन
योगी सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूजित जनजाति आयोग का गठन कर दिया है. आयोग में एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष और 17 सदस्य नियुक्त किए हैं. बाराबंकी से पूर्व विधायक बैजनाथ रावत को यूपी अनुसूचित जाति जनजाति आयोग अध्यक्ष नियुक्त किया तो, गोरखपुर से पूर्व विधायक बेचन राम और सोनभद्र के जीत सिंह खरवार को उपाध्यक्ष बनाया गया है. हरेंद्र जाटव, महिपाल बाल्मीकि, संजय सिंह, दिनेश भारत, शिव नारायण सोनकर, नीरज गौतम, रमेश कुमार तूफानी, नरेंद्र सिंह खजूरी, तीजाराम, विनय राम, अनिता राम, रमेश चंद्र,मिठाई लाल ,उमेश कठेरिया, अजय कोरी, जितेंद्र कुमार और अनिता कमल को आयोग का सदस्य बनाया गया है.वहीं, योगी सरकार ने गोरखपुर यूनिवर्सिटी की समाजशास्त्र विभाग की प्रोफेसर कीर्ति पांडेय को उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया है. पांडेय की नियुक्ति के बाद बेसिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग में लंबित पदों पर भर्ती की प्रक्रिया गति पकड़ेगी. उपचुनाव से पहले योगी सरकार ने राजनैतिक नियुक्तयों के जरिए सियासी समीकरण साधना शुरू कर दिया है.
यूपी सरकार की जातियों को साधने की कोशिश
उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग की कमान योगी सरकार ने कुर्मी समुदाय के नेता को सौंपी है तो अन्य ओबीसी जातियों को उपाध्यक्ष के तौर पर, साथ ही पाल समाज को अहमियत दी है. पिछड़ा वर्ग आयोग में सदस्यों के तौर पर अतिपिछड़ी जातियों को खास तवज्जे दी गई. इसी तरह से योगी सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग की कमान पासी समुदाय और उपाध्यक्ष के पद की कमान खरवार समाज को सौंपी गई है. इसके अलावा दलितों की अन्य जातियों के नेताओं को भी जगह दी है. शिक्षा सेवा चयन आयोग की कमान ब्राह्मण समाज से आने वाली कीर्ति पांडेय को सौंपी गई है.
बीजेपी के लिए उपचुनाव अहम
यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, जो बीजेपी ही नहीं बल्कि सीएम योगी की प्रतिष्ठा से भी जुड़े हुए हैं. लोकसभा चुनाव में बीजेपी यूपी की 80 में से सिर्फ 33 सीटें ही जीत सकी है और 2019 में जीती हुई अपनी 29 सीटें गंवानी पड़ गई है. यूपी में बीजेपी को जितनी सीटों का नुकसान हुआ है, उतनी ही संख्या बहुमत से कम है. यूपी में मिली हार ने बीजेपी को पूरी तरह से हिलाकर रख दिया है, जिसके चलते उपचुनाव काफी अहम माना जा रहा है.
कार्यकर्ताओं को साधने का दांव
सीएम योगी आदित्यनाथ ने अब खुद मोर्चा संभाल लिया है और उपचुनाव वाली सीटों पर प्रचार करने से लेकर संगठन तक को साधने की कवायद कर रहे हैं. इसके लिए नाराज कार्यकर्ताओं और नेताओं को मनाने में भी जुट गई है, जिसके लिए राजनैतिक नियुक्तियों का सिलसिला शुरू कर दिया है. पार्टी के बड़े नेताओं को विधानसभा और लोकसभा के चुनाव लड़ने का मौका मिल जाता है. इसके अलावा एमएलसी और राज्यसभा बनने का भी मौका मिल जाता है, लेकिन कार्यकर्ताओं को सत्ता में आने पर राजनैतिक नियुक्तियां मिलने की आस होती है. ऐसे में योगी सरकार ने अब नियुक्तियों का सिलसिला शुरू करके कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दूर करने का दांव चल दिया है.
किन पदों पर नहीं हुई नियुक्तियां
राज्य खाद्य आयोग में अध्यक्ष के अलावा पांच सदस्यों का कार्यकाल भी 2022 की शुरुआत में खत्म हो चुका है. राज्य महिला आयोग में एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष के साथ 25 सदस्यों के पद हैं. साल 2022 में सभी का कार्यकाल खत्म हो चुका है. इसके अलावा यूपी के 17 नगर निगम, 200 नगर पालिका और 546 नगर पंचायत में मनोनीत पार्षदों सदस्यों की नियुक्तियां होनी है, जो 2022 से खाली हैं. उत्तर प्रदेश प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड, पूर्व सैनिक कल्याण निगम, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, उत्तर प्रदेश किन्नर विकास निगम, सिंधी अकादमी, पंजाबी अकादमी और उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त विकास निगम की नियुक्तियां अभी नहीं हुई हैं. राजनैतिक नियुक्तियों के लिए सिर्फ बीजेपी में नेता ही दावेदार नहीं है. योगी सरकार में सहयोगी अपना दल (एस), आरएलडी, सुभासपा और निषाद पार्टी के नेता भी निगम, आयोग और बोर्ड में अध्यक्ष और सदस्य बनने की जुगत में है. इसके अलावा लोकसभा चुनाव से पहले सपा, बसपा, कांग्रेस से आए नेता भी अब निगम, आयोग और बोर्ड में जगह चाहते हैं. सत्ताधारी दल सूबे के निगम, आयोग, बोर्ड में राजनैतिक नियुक्तियों के जरिए सामाजिक समीकरण का भी ध्यान रखना होता है.